इंदौर का कचरा प्रबंधन मॉडल: कचरे से कमाई और स्वच्छ परिवहन की मिसाल देश की राजधानी दिल्ली और उसके पड़ोसी शहर गाजियाबाद की सीमा पर लगातार बढ़ता कचरे का पहाड़ न केवल पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती है, बल्कि यह राजनीतिक बहसों का केंद्र भी बना हुआ है। इसके विपरीत, भारत का एक शहर ऐसा भी है जिसने कचरे को एक संसाधन में बदलकर न केवल पर्यावरण को साफ रखा है, बल्कि इससे आर्थिक लाभ भी कमाया है। यह शहर है मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर, जिसे लगातार छह बार देश का सबसे स्वच्छ शहर होने का गौरव प्राप्त है।
इंदौर ने कचरे से बायो-सीएनजी (Bio-CNG) बनाकर एक अनूठी मिसाल पेश की है। इसके जरिए नगर निगम ने न केवल शहर की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को हरित ऊर्जा से संचालित किया है, बल्कि इससे अतिरिक्त आय भी अर्जित की है। यह मॉडल न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक सस्टेनेबल वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम की मिसाल बन गया है।
इस लेख में हम इंदौर के कचरा प्रबंधन मॉडल, बायो-सीएनजी प्लांट की कार्यप्रणाली, इसके पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ, और इसकी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
इंदौर का स्वच्छता अभियान: एक पृष्ठभूमि
स्वच्छ सर्वेक्षण में लगातार शीर्ष स्थान
इंदौर ने 2016 से 2023 तक लगातार सात बार भारत के स्वच्छ सर्वेक्षण में पहला स्थान हासिल किया है। यह उपलब्धि कोई संयोग नहीं, बल्कि नगर निगम, स्थानीय नागरिकों और प्रशासन के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है। शहर ने कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में अभिनव तकनीकों को अपनाकर एक मिसाल कायम की है।
कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन
इंदौर में प्रतिदिन लगभग 1,100 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से लगभग 550 टन गीला (बायोडिग्रेडेबल) कचरा होता है। इस कचरे को लैंडफिल में डंप करने के बजाय, नगर निगम ने इसे बायो-सीएनजी और कंपोस्ट खाद में परिवर्तित करने की व्यवस्था की है।
बायो-सीएनजी प्लांट: तकनीक और कार्यप्रणाली
क्या है बायो-सीएनजी?
बायो-सीएनजी (Bio-Compressed Natural Gas) एक प्रकार का स्वच्छ ईंधन है, जो जैविक कचरे (Organic Waste) के एनारोबिक डाइजेशन (Anaerobic Digestion) प्रक्रिया से उत्पन्न होता है। यह प्राकृतिक गैस (CNG) के समान ही होता है, लेकिन इसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधन के बजाय कचरे से बनाया जाता है।
इंदौर का बायो-सीएनजी प्लांट
इंदौर में देवी अहिल्या बाई सब्जी मंडी से प्रतिदिन 20-30 टन बायोडिग्रेडेबल कचरा निकलता है। इस कचरे को संसाधित करने के लिए नगर निगम ने 2018 में पहला बायो-सीएनजी प्लांट स्थापित किया। इसके बाद, सितंबर 2022 में एशिया के सबसे बड़े बायो-सीएनजी प्लांट का उद्घाटन किया गया, जिसे GOBARdhan (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan) योजना के तहत विकसित किया गया है।
प्लांट की विशेषताएं:
- क्षमता: प्रतिदिन 17,000 किलोग्राम बायो-सीएनजी उत्पादन
- कचरे की खपत: प्रतिदिन 550 टन गीला कचरा
- कार्बन उत्सर्जन में कमी: प्रतिवर्ष 1.30 लाख टन CO₂ की बचत
कार्य प्रणाली:
- कचरे का संग्रहण: शहर के विभिन्न हिस्सों से गीला कचरा एकत्र किया जाता है।
- सेग्रीगेशन (छंटाई): कचरे को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जाता है।
- एनारोबिक डाइजेशन: बायोडिग्रेडेबल कचरे को बंद टैंकों में डालकर बैक्टीरिया द्वारा विघटित किया जाता है। इस प्रक्रिया में बायोगैस (मीथेन) उत्पन्न होती है।
- शुद्धिकरण: बायोगैस को शुद्ध करके इसमें से CO₂ और अन्य अशुद्धियों को हटाया जाता है।
- संपीड़न: शुद्ध मीथेन को उच्च दबाव पर संपीड़ित करके बायो-सीएनजी में बदला जाता है।
बायो-सीएनजी के उपयोग और आर्थिक लाभ
1. सार्वजनिक परिवहन में उपयोग
इंदौर की सिटी बसों (iBus) को बायो-सीएनजी से संचालित किया जाता है। इससे न केवल ईंधन लागत में कमी आई है, बल्कि वायु प्रदूषण भी कम हुआ है।
2. वाणिज्यिक बिक्री
नगर निगम द्वारा उत्पादित अतिरिक्त बायो-सीएनजी को स्थानीय ईंधन स्टेशनों पर बेचा जाता है, जिससे प्रतिमाह लाखों रुपये की आय होती है।
3. कंपोस्ट खाद का उत्पादन
डाइजेशन प्रक्रिया के बाद बचे अवशेषों से उच्च गुणवत्ता वाली जैविक खाद तैयार की जाती है, जिसे किसानों को बेचा जाता है।
पर्यावरणीय प्रभाव
- लैंडफिल में कमी: कचरे का पुनर्चक्रण होने से लैंडफिल साइट्स पर दबाव कम हुआ है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी: मीथेन (एक शक्तिशाली GHG) का उपयोग ईंधन के रूप में होने से वायुमंडल में इसका उत्सर्जन रुका है।
- वायु गुणवत्ता में सुधार: डीजल/पेट्रोल की तुलना में बायो-सीएनजी से निकलने वाले हानिकारक पदार्थ कम होते हैं।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता
भारत के अन्य शहरों के लिए मॉडल
इंदौर का यह मॉडल दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे महानगरों के लिए एक विकल्प प्रस्तुत करता है, जहां कचरा प्रबंधन एक गंभीर समस्या है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने इंदौर के इस प्रयास को सराहा है।
निष्कर्ष
इंदौर ने साबित किया है कि सही योजना और तकनीक के साथ कचरा एक बोझ नहीं, बल्कि एक संसाधन बन सकता है। बायो-सीएनजी प्लांट न केवल पर्यावरण संरक्षण में मददगार है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत और स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को भी पूरा करता है। देश के अन्य शहरों को भी इस मॉडल से सीख लेने की आवश्यकता है।
“कचरा अगर सही जगह हो, तो खजाना बन सकता है” – इंदौर ने इस कथन को सच साबित कर दिया है।