सड़क निर्माण मशीनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता हटाने का केंद्र का निर्णय भारत में सड़क निर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भारी-भरकम मशीनों का उपयोग एक आम बात है। इन मशीनों में जेसीबी, रोड रोलर, डंपर, बुलडोजर, क्रेन और अन्य अर्थ-मूविंग उपकरण शामिल हैं, जो सड़कों, पुलों और अन्य निर्माण कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाल ही में, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए स्पष्ट किया है कि इन मशीनों को चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है और न ही इनका आरटीओ (RTO) में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। यह निर्णय राज्य सरकारों को भेजे गए एक आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया गया है।
इस लेख में हम इस निर्णय के पीछे के कारणों, इसके प्रभाव और सड़क निर्माण उद्योग पर इसके संभावित परिणामों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
मोटर वाहन अधिनियम और मशीनरी की परिभाषा
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने अपने बयान में स्पष्ट किया है कि “अर्थ-मूविंग मशीनरी” जैसे जेसीबी, रोड रोलर, डंपर, बुलडोजर आदि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत वाहनों की श्रेणी में नहीं आते हैं। इसलिए, इन मशीनों के संचालन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस या आरटीओ रजिस्ट्रेशन की कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं है।
मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार वाहन की परिभाषा
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 2(28) के अनुसार, “मोटर वाहन” वह कोई भी वाहन है जो मोटर या इलेक्ट्रिक पावर द्वारा चलता है और सार्वजनिक सड़कों पर चलने के लिए डिज़ाइन किया गया है। हालांकि, निर्माण मशीनें जैसे कि जेसीबी, बैकहो लोडर, या रोड रोलर मुख्य रूप से सड़क निर्माण स्थलों पर उपयोग की जाती हैं और इन्हें सड़कों पर चलने के लिए नहीं बनाया गया है। इसलिए, ये मशीनें मोटर वाहन की परिभाषा में नहीं आतीं।
राज्य सरकारों को निर्देश
केंद्र ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे इन मशीनों के संचालकों से ड्राइविंग लाइसेंस या वाहन रजिस्ट्रेशन की मांग न करें। इससे निर्माण कंपनियों और ठेकेदारों को राहत मिलेगी, जिन्हें पहले इन मशीनों के लिए अनावश्यक कागजी कार्रवाई और लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था।
इस निर्णय के पीछे के कारण
1. निर्माण मशीनों का प्राथमिक उद्देश्य
सड़क निर्माण मशीनों का मुख्य उद्देश्य सड़कों पर वाहन की तरह चलना नहीं, बल्कि निर्माण कार्यों को पूरा करना है। ये मशीनें आमतौर पर निर्माण स्थलों या खदानों में ही काम करती हैं और सार्वजनिक सड़कों पर केवल ट्रांसपोर्ट के लिए ही चलती हैं। इसलिए, इन्हें मोटर वाहन की श्रेणी में रखना उचित नहीं है।
2. उद्योग को राहत प्रदान करना
इस निर्णय से निर्माण कंपनियों और ठेकेदारों को बड़ी राहत मिलेगी। पहले, इन मशीनों को चलाने वाले ऑपरेटरों को विशेष ड्राइविंग लाइसेंस लेने पड़ते थे, जिससे समय और धन दोनों की बर्बादी होती थी। अब इस अनिवार्यता के हटने से निर्माण कार्यों में तेजी आएगी।
3. कानूनी स्पष्टता
कुछ राज्यों में इन मशीनों के लिए अलग-अलग नियम थे, जिससे कंफ्यूजन की स्थिति बनी रहती थी। केंद्र के इस निर्णय से पूरे देश में एकरूपता आएगी और कानूनी विवादों से बचा जा सकेगा।
इस निर्णय के लाभ
1. निर्माण कार्यों में तेजी
चूंकि अब इन मशीनों के लिए लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं है, इसलिए निर्माण कंपनियों को कर्मचारियों की भर्ती और मशीनों के परिचालन में आसानी होगी। इससे सड़क निर्माण और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स तेजी से पूरे होंगे।
2. ऑपरेटरों पर बोझ कम होगा
मशीन ऑपरेटरों को अब ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करने या टेस्ट देने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, उन्हें मशीन चलाने के लिए प्रशिक्षण और सुरक्षा मानकों का पालन करना होगा।
3. राज्य सरकारों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश
इस निर्णय से राज्य सरकारों को भी स्पष्टता मिलेगी कि वे इन मशीनों के संबंध में किस तरह के नियम लागू कर सकती हैं और किन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
क्या इस निर्णय से सुरक्षा को खतरा है?
कुछ लोगों का मानना है कि यदि मशीन ऑपरेटरों के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता हटा दी जाएगी, तो इससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि:
- मशीन ऑपरेटरों को अभी भी प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा।
- निर्माण कंपनियों को अपने कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
- यदि कोई मशीन सार्वजनिक सड़क पर चलती है, तो उसके लिए ट्रैफिक नियमों का पालन करना होगा।
इसलिए, सुरक्षा के मामले में कोई ढिलाई नहीं दी गई है, बल्कि केवल अनावश्यक कानूनी प्रक्रियाओं को हटाया गया है।
फास्टैग के संबंध में नया निर्देश
इसी बीच, सड़क परिवहन मंत्रालय ने फास्टैग के संबंध में भी एक नया निर्देश जारी किया है। अब वाहनों का रजिस्ट्रेशन या फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि वाहन में फास्टैग लगा हुआ है या नहीं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी वाहन इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली का उपयोग करें, जिससे टोल प्लाजा पर यातायात प्रवाह सुचारू रूप से चल सके।
निष्कर्ष
केंद्र सरकार का यह निर्णय सड़क निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के लिए एक बड़ी राहत है। इससे न केवल निर्माण कार्यों में तेजी आएगी, बल्कि ठेकेदारों और मशीन ऑपरेटरों को भी कानूनी जटिलताओं से छुटकारा मिलेगा। हालांकि, सुरक्षा मानकों को लेकर सजगता बरतनी होगी ताकि निर्माण स्थलों पर दुर्घटनाओं से बचा जा सके।
सरकार का यह कदम “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” और “आत्मनिर्भर भारत” के संकल्प को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा।