भारत में मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए दोपहिया वाहन सबसे सुविधाजनक और किफायती परिवहन का साधन हैं। हाल के वर्षों में सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन अभी भी पेट्रोल-डीजल वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री काफी कम है। अब दिल्ली सरकार ने अपनी EV पॉलिसी 2.0 में एक बड़ा बदलाव करते हुए 2026 से पेट्रोल दोपहिया वाहनों की रजिस्ट्रेशन पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा है।
यह निर्णय कितना व्यावहारिक है? क्या दिल्ली में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पर्याप्त चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर है? आइए, इस नई नीति के पक्ष और विपक्ष पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
दिल्ली EV पॉलिसी 2.0: मुख्य प्रावधान
दिल्ली सरकार की नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
- 2026 से पेट्रोल दोपहिया वाहनों पर प्रतिबंध – अगस्त 2026 के बाद दिल्ली में कोई नया पेट्रोल स्कूटर या मोटरसाइकिल रजिस्टर नहीं होगा।
- 13,200+ चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना – शहर में हर 5 किमी पर एक चार्जिंग पॉइंट उपलब्ध कराने का लक्ष्य।
- 2027 तक 95% EV अपनाने का लक्ष्य – वर्तमान में EV अपनाने की दर एकल अंक में है, जो इस लक्ष्य को अवास्तविक बनाता है।
क्या यह लक्ष्य हासिल करना संभव है?
पिछली EV पॉलिसी (2020) के तहत दिल्ली में 48,000 चार्जिंग पॉइंट लगाने का लक्ष्य था, लेकिन अभी तक केवल 10% ही स्थापित हो पाए हैं। इसी तरह, 2024 तक 25% नए वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाने का लक्ष्य था, लेकिन वास्तविकता में यह आंकड़ा 5-7% के आसपास ही है।
इस हिसाब से, 2027 तक 95% EV अपनाने का लक्ष्य एक सपने जैसा लगता है।
इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की वर्तमान स्थिति
1. रेंज और प्रैक्टिकलिटी
- सबसे लंबी रेंज वाला इलेक्ट्रिक स्कूटर: सिंपल वन (212 किमी, ARAI-certified)
- ओला S1 प्रो जेन 2 (195 किमी, ARAI-certified)
- रीयल-वर्ल्ड रेंज: ARAI टेस्टिंग लैब में मिली रेंज वास्तविक स्थितियों से 20-30% कम होती है।
- पेट्रोल स्कूटर (110cc): 6 लीटर टैंक में 300 किमी तक चलता है (50 kmpl औसत)।
2. मोटरसाइकिल्स का अभाव
- इलेक्ट्रिक स्कूटर तो बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल्स की संख्या बहुत कम है।
- बजाज, हीरो, TVS जैसी कंपनियों ने अभी तक कोई बड़ा इलेक्ट्रिक बाइक लॉन्च नहीं किया है।
- पेट्रोल बाइक्स पर प्रतिबंध का मतलब होगा कि उपभोक्ताओं के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा।
3. चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
- दिल्ली में अभी भी चार्जिंग स्टेशनों की भारी कमी है।
- अगर 2026 तक 13,200 चार्जर्स नहीं लगे, तो लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
- पब्लिक चार्जिंग स्टेशनों पर भीड़ होगी, जिससे चार्जिंग टाइम बढ़ेगा।
क्या यह नीति जल्दबाज़ी में ली गई है?
1. पुराने वाहनों पर कोई प्रतिबंध नहीं
- नई पॉलिसी में पुराने पेट्रोल वाहनों पर रोक नहीं लगाई गई है।
- कमर्शियल वाहन और निर्माण उपकरण अभी भी पुराने डीजल इंजनों पर चल रहे हैं, जो प्रदूषण का मुख्य स्रोत हैं।
2. EV की गुणवत्ता और सर्विसिंग समस्याएं
- कई इलेक्ट्रिक स्कूटर कंपनियों (जैसे ओला, ऑल्ट्राविट) के बैटरी और बिल्ड क्वालिटी पर सवाल उठे हैं।
- सर्विस सेंटरों की कमी के कारण मरम्मत में देरी होती है।
3. मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं पर असर
- इलेक्ट्रिक स्कूटर की कीमत पेट्रोल वाहनों से अभी भी 30-40% ज्यादा है।
- बैटरी रिप्लेसमेंट लागत (₹30,000-₹50,000) लोगों के लिए एक बड़ी चिंता है।
निष्कर्ष: क्या यह नीति सही दिशा में है?
दिल्ली सरकार का प्रदूषण कम करने का इरादा सराहनीय है, लेकिन बिना पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर के पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध लगाना एक जल्दबाज़ी भरा फैसला लगता है।
सुझाव:
✔ पहले चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करें।
✔ इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल्स को बढ़ावा दें।
✔ EV खरीदने वालों को और सब्सिडी दें।
✔ पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाएं।
अगर यह नीति बिना तैयारी के लागू की गई, तो इससे आम लोगों को परेशानी होगी, न कि प्रदूषण में भारी कमी।
निष्कर्षतः, दिल्ली सरकार को EV पॉलिसी को धीरे-धीरे लागू करना चाहिए, न कि एकाएक बदलाव लाना चाहिए। वरना, यह नीति उपभोक्ताओं के लिए मुसीबत बन सकती है।